-प्रकाश कुमार सक्सेना
कालाधन विदेशों से आया हो या न आया हो लेकिन भारत में काफी चर्चित रहा है। सौ करोड़ इकट्ठा देखने की चाहत में अड़ीबाजी करते तिहाड़ का पर्यटन कर आये एक पत्रकार साहब भी अपने काले-सफेद शो में अपनी जनता से पूछते पाये गये -"आपने कभी तीन सौ करोड़ रुपये एक साथ देखे हैं?"
कोई चैनल ढाई सौ करोड़, कोई पौने तीन सौ करोड़ तो कोई तीन सौ करोड़ रुपये बता रहा है काँग्रेस सांसद धीरज साहू के पास से बरामदगी के। बताया तो यह भी जा रहा है कि उनका चालीस सालों से शराब का कारोबार चल रहा है। सवाल यह है कि यह काला सफेद धन चालीस वर्षों में जमा हुआ है या 2016 की नोटबन्दी के बाद? यह सवाल इसलिये उठ रहा है कि तस्वीरों में जो नोटों की गड्डियां दिखाई जा रही हैं उनमें पाँच सौ और दो सौ के वो नोट हैं जो नोटबन्दी के दौरान नये जारी किये गये हैं? तो क्या ये राशि 2016-17 के बाद कमाई गई है या नोट बदले गये हैं? अब आप यह न कहना कि इतने नोट बदले नहीं जा सकते हैं। क्योंकि इस कालेधन पर अहमदाबाद को ऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष रहे जनाब भी सवाल उठा रहे हैं जिनके अध्यक्ष रहते पाँच दिन में एक लाख साठ हजार लोगों द्वारा 745 करोड़ रुपये उस बैंक से बदले जाने की कथा सुर्खियों में आयी थी।
तो क्या यह राशि पिछले छः वर्षों में कमाई गयी थी? मतलब कालाधन ई.डी. और न जाने कितने चौकीदारों की चौकीदारी के चलते आज भी पनप रहा है? मतलब साहब के रहते भ्रष्टाचार चरम पर है? मतलब भ्रष्टाचार के शीर्ष की ओर बढ़ते भारत के संबंध में फोर्ब्स की रिपोर्ट सही है? क्यों नहीं हो सकती? 2019 में कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते पड़े छापों के दौरान एक आरोपी ने कहा था कि ये सारी रकम भाजपा के शासन के दौरान कमाई गई है। संभवतः इसीलिये वह मामले शान्त भी हो गये?
फिलहाल देश अच्छे दिन और अमृतकाल को भोग रहा है। अगली टॉस्क सारे महाविद्यालयों को दे दी गई है कि अब "विकसित भारत 2047" पर साप्ताहिक कार्यक्रम आयोजित हों, परिचर्चाएं हों और सिर्फ अच्छा ही अच्छा गाया जाये। वैसे भी देश उम्मीदों पर जीता है। कालेधन की बातों से उसने अभी तक अपने खाते में पन्द्रह लाख रुपये आने की उम्मीद नहीं छोड़ी है। और विकसित भारत 2047 तक देखने की उम्मीद में एक बहुत बड़ी आबादी इस धरती से रुखसत हो चुकी होगी?


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