-प्रकाश कुमार सक्सेना
प्रदेश में शिवराज के खिलाफ काफी आक्रोश था। न सिर्फ जनता में बल्कि पार्टी लेवल पर भी भारी असंतोष था। केन्द्रीय नेतृत्व इस पर अपनी पैनी नज़र रखे हुए था। इसीलिये वह चाहता था कि चुनाव प्रधानमंत्री मोदीजी के चेहरे पर लड़ा जाये। इसलिये काफी पहले से मोदीजी की पी.आर. ब्राण्डिंग का काम करने वाली एजेन्सी मूव्हिंग पिक्सल्स को सक्रिय कर दिया गया था। कैम्पेन की थीम थी-"म.प्र. के मन में मोदी"। इस बीच अपने चेहरे को गायब होने की स्थिति को भांपकर शिवराज अपने चहेते अफसर मनीष सिंह को जनसम्पर्क विभाग में लेकर आये। यहीं से शिवराज ने दिखा दिया कि वे आसानी से समर्पण करने वालों में से नहीं हैं। मोदी और शिवराज के चेहरे को लेकर स्पष्ट टकराव दिखाई देने लगा।
इस बीच ऐसा प्रदर्शित भी किया जाता रहा कि मोदीजी की ब्राण्डिंग करने वाली कम्पनी के काम करने का बेस तैयार किया जा रहा है। सबसे पहले इसके लिये माध्यम के द्वारा 52 जिलों में फिल्म निर्माण का काम अलग-अलग एजेन्सियों को सौंपा गया। इस बीच हाई लेवल आडियो-वीडियो निर्माण एजेंसी के लिये टेण्डर निकाले गये। टेण्डर की दरों से स्पष्ट था कि यह सुनियोजित तरीके से तय दरें थीं। तीन एजेंसियों के एक समान रेट थे। और यही काफी था उस टेण्डर को निरस्त कर मामले में देरी करने को। फिर से टेण्डर हुये और निम्नतम दर के आधार पर मूव्हिंग पिक्सल को काम दिया भी जाना था लेकिन फाइनल वर्क आर्डर नहीं दिया गया। मतलब साफ था।
इस बीच शिवराज के "लाड़ली बहना" योजना को प्रमुखता देते हुये शिवराज के चेहरे को जोर-शोर से चमकाने की कवायद तेज कर दी गई। हर कुछ कदम पर शिवराज का चेहरा दिखाई देने लगा। मोदीजी के चेहरे को पीछे किया जाने लगा। इसी बीच शिवराज ने बहनों के बीच भावनात्मक दाँव चला। "मैं चला जाउंगा तो बहुत याद आउंगा" से लेकर "मोदीजी को प्रधानमंत्री बनना चाहिये या नहीं?" वाले डॉयलॉग चलने लगे। जिन शिवराज को जहां टिकिट न देने की चर्चा चल रही थी, चौथी सूची में उन्हें व उनके समर्थकों को भी टिकिट देना पड़े।
उधर जबलपुर में केन्द्रीय नेतृत्व के प्रतिनिधि के तौर मौजूद भूपेन्द्र यादव के अंगरक्षक पर असंतुष्टों के हमले से पार्टी और जनता के बीच असंतोष को भांपकर स्वयं अमित शाह को मध्यप्रदेश में मोर्चा संभालना पड़ा। उसके बाद जो चुनाव परिणाम आये वो सभी के सामने हैं। हाईकमान इस बात को अच्छे से जानता है कि ये परिणाम शिवराज की इस कवायद के नहीं हैं। इसलिये परिणाम आने के बाद सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल सहित सभी नेताओं ने लाड़ली बहना की बजाय इस जीत का श्रेय मोदी मैजिक को दिया।
अब शिवराज मुख्यमंत्री पद के लिये भी बहनाओं के बीच अपनी भावनात्मक बातों से केन्द्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें अपनी नौकरशाही पर पूरा विश्वास है और वह नौकरशाही तथा उनका जनसम्पर्क विभाग अभी भी अपने प्रभाव से मीडिया में लाड़ली बहना इफेक्ट को बनाये रखे हुये है। शिवराज ने प्रधानमंत्री पद के लिये अपनी महत्वाकांक्षा को कभी नहीं छोड़ा था लेकिन उनका तरीका विनम्रता वाला रहा है। उनकी इस महत्वाकांक्षा के लिये यह जरूरी है कि वे मुख्यमंत्री बने रहें। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में अपेक्षाकृत परिणाम न मिलने की स्थिति में वे समझौता उम्मीदवार होने की अपनी संभावनाएं वे जीवित रखे हुए हैं। संघ के अनुषांगिक संगठनों और व्यक्तियों को वे लगातार उपकृत करते रहे हैं। इन सभी के सहयोग की उन्हें पूरी उम्मीद है। गुजरात लॉबी उनकी सारी चालों और महत्वाकांक्षा पर अपनी नज़रें जमाये हुये है। देखना है वह शिवराज के इस भावनात्मक दबाव के आगे घुटने टेकती है या उनके अरमानों पर पानी फेरती है?


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