-प्रकाश कुमार सक्सेना
संघ के अनुषांगिक संगठनों, नेताओं, विधायकों व मंत्रियों को करोड़ों के विज्ञापनों से पोषने वाले विभाग पर दैनिक भास्कर के अनुसार 93 लाख का प्रापर्टी टैक्स बकाया है। इसमें लिखा है कि नगरनिगम वसूली के लिये सख्त कदम भी उठायेगा? तो मुख्यमंत्रीजी के इन विभागों की भी कुर्की करेगा क्या? पहले ही एक फिल्म निर्माण करने वाली कंपनी ने जनसंपर्क विभाग से एक करोड़ रुपयों से अधिक की राशि के लिये कोर्ट के आदेश से कुर्की का सहारा लिया है। उस मामले में तो माना जा सकता है कि जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों ने मुख्यमंत्री जी को अंधेरे में रखा था। लेकिन इस खबर से दैनिक भास्कर ने तो अब रोशनी डाल दी है? या फिर जितने निवेश के दावे किये गये हैं, उनके आने पर भरा जायेगा प्रापर्टी टैक्स?
वैसे आम आदमी यदि अपने घर का प्रापर्टी टैक्स भरने से चूक जाये तो सरकार उससे पेनाल्टी भी वसूल रही है और दोगुना प्रापर्टी टैक्स भी? बिल्कुल डलहौजी की विलय नीति की तरह? इस खबर के अनुसार भोपाल के लगभग आधे लोग प्रापर्टी टैक्स नहीं भर पा रहे हैं।
सरकार नगर पालिका निगम अधिनियम में संशोधन कर प्रापर्टी टैक्स की गणना में परिवर्तन कर चुकी है। और यह परिवर्तन 2021-22 से लागू हो चुका है तथा इसका असर 2022-23 से दिखाई भी देने लगा है। दरअसल स्वयं के निवास पर मिलने वाली 50% की छूट को अब चालू वित्तीय वर्ष के लिये ही सीमित कर दिया है। इससे चूकने पर 15% की पेनाल्टी व छूट वाली राशि से दोगुना दोनों भरना पड़ता है। जनता 50% छूट वाले प्रापर्टी टैक्स को मूल टैक्स समझती रही है और अचानक इस छूट की समाप्ति (वित्तीय वर्ष चूकने पर) को दोगुना टैक्स समझ रही है। और इसीलिये सकते में है। नगरनिगम के वार्ड कार्यालय भी इसे अच्छे से समझा नहीं पा रहे हैं। जनता के बीच सवाल यह है कि एक अपराध के दो दण्ड कैसे हो सकते हैं? एक तो पेनाल्टी ऊपर से दोगुना प्रापर्टी टैक्स भी? टैक्स में छूट समाप्त करना भी तो एक पेनाल्टी ही है? कानूनन एक अपराध के लिये दो सजाएं नहीं हो सकतीं। खैर एक सवाल यह भी है कि सारी सख्ती क्या सिर्फ आमजन के प्रति ही रहेगी? इन सरकारी कार्यालयों को वसूली में इतनी छूट क्यों?


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