-प्रकाश कुमार सक्सेना
यूं तो यह विभाग और उसके उपक्रम सरकार की छवि चमकाने के लिये जनता के हजारों करोड़ फूंकने के लिये जाने जाते हैं लेकिन फरवरी की यह ग्यारह तारीख इसी की छवि को मटियामेट कर गई। अधिकारियों की लापरवाही और स्वयं को कानून से ऊपर समझने का अहंकार मुख्यमंत्री मोहन यादव के इस विभाग की खुद की छवि पर कालिख पोत गया। और जनसंपर्क संचालनालय के विरुद्ध कुर्की का वारंट जारी हुआ।
मामला इसके फिल्म प्रभाग से संबंधित है। डिक्रीधारी एम.एस. खोजी पिक्चर्स प्रा.लि. (जिसके डायरेक्टर शिव कुमार शर्मा हैं) के एक करोड़ रुपयों से ऊपर के भुगतान के लिये द डायरेक्टर ऑफ पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट म.प्र. सरकार एवं म.प्र. राज्य द्वारा कमिश्नर डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक रिलेशन के विरुद्ध मा. कामर्शियल कोर्ट के अठारहवें न्यायाधीश, वरिष्ठ खंड जिला भोपाल द्वारा कुर्की हेतु वारंट जारी किया गया। कोर्ट के आदेश पर अपर संचालकों व अन्य अधिकारियों जिनमें संजय जैन, राजेश बेन, जी.एस. वाधवा, अशोक मनवानी सहित अन्य के कमरों से सामान की लिस्ट बनाई गई और डिप्टी डायरेक्टर सुश्री बिन्दु सुनील द्वारा सुपुर्दगी पत्र पर हस्ताक्षर किये गये। हालांकि वाहन शाखा के वाहनों की सूची क्यों नहीं बनाई गई? यह समझ से परे है।
बताया जाता है कि इस पूरे मामले से मुख्यमंत्री एवं आयुक्त को यहां के अधिकारियों द्वारा अंधेरे में रखा गया। शिवराज सरकार के दौरान जनसंपर्क विभाग व म.प्र. माध्यम को मल्टी प्लेक्स बना दिया गया। कई तथाकथित पत्रकार इस विभाग में फिल्म निर्माण, नुक्कड़ नाटक, इवेंट्स आदि के धंधों में लगाये गये। इन धंधेबाजों में कुछ तो अपने न्यूज चैनल भी चला रहे हैं। अब आप ही सोचिये कि जो इस सरकार के इसी विभाग से धंधा करता हो वो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की भूमिका कैसे निभा पायेगा? ऐसा कोई प्रभाग नहीं होगा जिसमें घोटाले न हों? फिल्म प्रभाग को ही लीजिये। म.प्र. माध्यम जनसंपर्क विभाग की रजिस्ट्रार फर्म्स एण्ड सोसायटी से पंजीकृत संस्था है। फिल्म निर्माण के लिये यह अन्य संस्थाओं की तरह ही जनसंपर्क संचालनालय में एम्पैनल्ड है। और एम्पैनल करने वाले अधिकारियों में म.प्र. माध्यम का भी वही अधिकारी है जो वहां का फिल्म प्रभाग देखता है? मतलब एम्पैनलमेंट की दावेदार संस्था का अधिकारी स्वयं एम्पैनलमेंट करने वाले प्राधिकारियों में मुख्य भूमिका में? यही अधिकारी जनसंपर्क विभाग की अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों की सूची में राज्य स्तरीय अधिमान्यता प्राप्त भी है? और इसी म.प्र. माध्यम में भर्तियां भी मनमाने तरीकों से होती रही हैं जो अपने आप में गंभीर जाँच का विषय है। ऐसे ढेरों तकनीकी मुद्दे हैं जिसके लिये पृथक से एक स्टोरी बनाना पड़ेगी।
फिलहाल इस कार्रवाई से मोहन सरकार की छवि को काफी धक्का लगा है। लेकिन वो लोग खुश हैं जो इन अधिकारियों के स्वयं को कानून से ऊपर मानने वाले रवैय्ये से पीड़ित थे। इस कार्रवाई से ऐसे लोगों में न्याय की उम्मीद जागी है। ईमानदारी से इस विभाग के घोटालों की जाँच हो जाये तो पत्रकारों के लिये "प्रताड़ना और पुचकारना" के रूप में तथा सरकार के घोटालों को मैनेज करने वाले इस विभाग के कुछ को छोड़कर शायद ही कोई अधिकारी या कर्मचारी बचें? फिलहाल डरे बिके मीडिया में इस खबर को दबा दिया गया है लेकिन माउथ पब्लिसिटी से ही सही खबर अब आमजन तक पहुंच रही है।
शिवराज सरकार ने लोकतंत्र की हत्या करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी जिसके लिये इस विभाग का उपयोग किया गया। भारतीय संविधान के अन्तर्गत दिये गये सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों व गाइडलाइंस को नजरअंदाज किया गया। लोक प्रतिनिधित्व कानून की धज्जियां उड़ाई गईं और अनुच्छेद 14 के विरुद्ध "विशिष्ट व्यक्तियों" के कई गुट बनाए गए। यहां कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक, भाजपा-संघ के नेताओं, संस्थाओं, विधायक, मंत्री और यहां तक कि स्वयं मुख्यमंत्री एक संस्था के संयोजक के रूप में पद का दुरुपयोग करते हुए लाभ लेने अथवा पहुंचाने वालों में शामिल हैं। "बागड़ ही खेत को खा जाये" वाली कहावत यहां चरितार्थ होती है। सिविल सेवा आचरण नियमों को यहां मानने से इंकार कर प्रधानमंत्री कार्यालय तक को गलत लीपापोती वाली जानकारियां भेज दी जाती हैं। यहां तक कि बार एसोसिएशन की गाइडलाइंस भी नजरअंदाज की गईं। जिसके बारे में बाद में और विस्तृत रूप से स्टोरी प्रकाशित की जायेगी।



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